अमरुद की खेती बागवानी फसल के रूप में की जाती है. अमरुद का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है. जिसे सम्पूर्ण भारत में आसानी से उगाया जा सकता है. वर्तमान में इसकी काफी उन्नत किस्मों को तैयार कर लिया गया है. जिन्हें उगाकर किसान भाई इसके पौधों से अच्छा ख़ासा उत्पादन हासिल करता है. इसकी खेती जहां अधिक बारिश और सर्दियों में अधिक समय तक पाला पड़ता हो वहां नही करनी चाहिए. क्योंकि ऐसे प्रदेशों में इसकी खेती करने से फसल में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं.
अमरुद के पौधों में कई तरह के कीट और जीवाणु जनित रोग देखने को मिलते हैं, जो इसके पौधे के साथ साथ इसके फलों को भी काफी नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे इसकी पैदावार पर काफी फर्क देखने को मिलता है. लेकिन अगर इन रोगों की पहचान कर तुरंत इनकी रोकथाम कर दी जाए तो फसल को काफी हद तक खराब होने से बचाया जा सकता हैं.
आज हम आपको अमरुद के पौधे पर लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम के बारे में जानकारी देने वाले हैं.
फल मक्खी
अमरुद के पौधों में फल मक्खी रोग का प्रभाव फलों के बनने के तुरंत बाद दिखाई देने लगता है. जो पौधों पर कीट के माध्यम से फैलता है. इस रोग के कीट फलों पर अपने लार्वा को जन्म देते हैं. इसका लार्वा बाद में बड़ा होकर फलों को खराब कर देता है. जिससे फल समय से पहले ही सड़कर गिर जाते हैं. रोग के बढ़ने से पैदावार में 60 प्रतिशत तक नुक्सान देखने को मिल सकता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए इसके कीट के दिखाई देने के तुरंत बाद खेत में पौधों से लगभग 5 फिट की ऊंचाई पर मिथाइल यूजीनॉल ट्रेप लगाएं. जो फल मक्खी के कीट को अपनी और आकर्षित कर उन्हें नष्ट कर देती है.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर मेलाथियान की एक मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
- इसके अलावा शुरुआत में पौधों को उचित दूरी पर उगाना चाहिए. इससे रोग की सुंडी एक पौधे से दूसरे पौधे के सम्पर्क में आसानी से नही आती.
छाल भक्षक सुंडी
अमरुद के पौधों में छाल भक्षक सुंडी का आक्रमण पौधों के विकास के दौरान किसी भी वक्त दिखाई दे सकता है. इस रोग की सुंडी ज्यादातर दो शाखाओं के मिलने वाली जगहों पर छुपकर रहती हैं. जो पौधे की डाली, शाखा और तने की छाल को खाकर उनमें सुरंग बना देती हैं. जिसके कारण पौधा कमजोर पड जाता है. और रोगग्रस्त शाखाओं की पत्तियां पीली पड़कर नष्ट हो जाती हैं. और कुछ दिनों बाद पूरी डाली सूख जाती है. रोग बढ़ने पर कभी कभी सम्पूर्ण पौधा भी सुख जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए डाईक्लोरोवास की उचित मात्रा को रोगग्रस्त डालियों पर दिखाई देने वाले छिद्रों में डालकर उन्हें बंद कर देना चाहिए.
- इसके अलावा क्लोरोपायरीफॉस और क्यूनालफास की उचित मात्रा का इस्तेमाल भी पौधों में रोग दिखाई देने पर कर सकते हैं.
फल बेधक
अमरुद के पौधों में फल बेधक रोग कीट की वजह से दिखाई देता है. जो इसके फलों को काफी अधिक प्रभावित करता है. इस रोग के कीट की सुंडी फलों के लगने से पहले इसकी पत्तियों को खाकर पौधों के विकास को प्रभावित करती है. जबकि फल लगने पर सुंडी अमरुद के फलों में छेद कर उन्हें अंदर से खराब कर देती है. जिससे इसके फलों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. और फल समय से पहले ही टूटकर गिर जाते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कार्बेरिल की उचित मात्रा का छिडकाव 15 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.
- इसके अलावा पौधों पर फलों के बनने से पहले उन पर इथोफेनप्रोक्स की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
मिली बग
अमरुद के पौधों में मिली बग रोग कीट की वजह से दिखाई देता है. पौधों पर इस रोग का प्रकोप ज्यादातर गर्मियों के मौसम में अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों, शखाओं और कलियों पर चिपककर उनका रस चूसते हैं. जिससे पौधे कमजोर पड़ने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर पौधे की पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. जिससे पौधों का विकास पूरी तरह रुक जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों के आसपास खरपतवार पैदा ना होने दें. और सर्दी के मौसम के तुरंत बाद मिट्टी को पलट दें. और मिट्टी में क्युनालफ़ॉस को मिला दें. जिससे इसके अंडे नष्ट हो जाते हैं.
- फलों में रोग दिखाई देने के तुरंत बाद पौधों पर डाईमिथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- इसके अलावा फलों के लगने से पहले पौधों पर बूप्रोफेजिन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- इसके कीटों को पौधों पर चढ़ने से रोकने के लिए तने के चारों तरफ एक्लाथिन की लगभग डेढ़ फिट चौड़ी पट्टी लगा दें. या ग्रीस का लेप पौधों पर कर दें.
सूत्रकृर्मी
अमरुद के पौधों में दिखाई देने वाला ये एक मृदा जनित रोग है. इस रोग का अधिक प्रभाव नए पौधों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से पौधों की जड़ों में गाठें बन जाती हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधे की पत्तियां हल्की पीली दिखाई देने लगती हैं. रोग बढ़ने पर पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं. जिससे पौधों का विकास पूरी तरह रुक जाता है. रोग के बढ़ने के कुछ दिन बाद पौधा पूरी तरह नष्ट हो जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जलभराव ना होने दें.
- सर्दी के मौसम के तुरंत बाद पौधों के तने के पास से कुछ दूरी छोड़ते हुए हल्की मिट्टी हटाकर उसमें नीम की खली और कार्बोफ्युरान उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें.
- इसके अलावा पौधों में रोग अधिक दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा को पानी में मिला पौधों की जड़ों में डालना चाहिए.
उखटा रोग
अमरुद के पौधों में उखटा रोग का प्रभाव फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने से शुरुआत में पौधे की कुछ शाखाओं की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. जो कुछ दिनों बाद सूखकर गिर जाती है. और शाखाएं सूख जाती हैं. रोग के अधिक प्रभावित होने पर पौधे की शीर्ष शाखाओं की पत्तियां सूखने लगती है. और कुछ दिनों बाद सम्पूर्ण पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जल अधिक समय तक जमा ना होने दें.
- रोग ग्रस्त पौधे की शाखाओं को काटकर हटा देना चाहिए. और अधिक प्रभावित पौधे को उखाकर नष्ट कर दें.
- इसके अलावा पौधों की गुड़ाई के वक्त कार्बेन्डाजिम या टोपसीन एम की उचित मात्रा का घोल पौधों की जड़ों में डालना चाहिए.
- पौधों को उर्वरक देने के दौरान उनकी जड़ों में नीम की खली और ट्राईकोडर्मा फफूंद नाशक की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर पौधों की जड़ों में छिडकना चाहिए.
डाईबैक रोग
अमरुद के पौधों में लगने वाला डाईबैक रोग फफूंद की वजह से जन्म लेता है. जिसे श्यामवर्ण के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग का प्रभाव पौधों पर बारिश के मौसम में अधिक देखने को मिलता है. इसके लगने से अमरुद के फलों पर काले रंग के चित्ते दिखाई देने लगते हैं. रोग के बने रहने से इसके फल जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं. रोग के बढ़ने पर पौधे के शीर्ष की शाखाओं की पत्तियां ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं. और कुछ दिन बाद पूरा पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर फलों के बने से पहले फूल आने के दौरान ही बोर्डो मिश्रण या कॉपर ऑक्सीक्लोराईड की उचित मात्रा का छिडकाव 15 से 20 दिन में दोहराएँ.
- इसके अलावा रोग दिखाई देने के बाद पौधों पर मैंकोजेब या थायोफिनाईट मिथाइल की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
फल सडन
अमरुद के पौधों में फल सडन रोग का प्रभाव फफूंद की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने से अमरुद के फलों पर सफ़ेद रूई की जैसी फफूंद दिखाई देने लगती है. जिसका प्रभाव रोग बढ़ने पर फलों पर अधिक दिखाई देने लगता है. जिससे पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत मैंकोजेब की उचित मात्र का छिडकाव तीन से चार बार में करना चाहिए.
- इसके अलावा रोगग्रस्त फलों को एकत्रित कर उन्हें नष्ट कर दें.
धूसर अंगमारी
अमरुद के फलों में धूसर अंगमारी रोग फफूंद की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर फलों पर छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इस रोग के बढ़ने पर फलों की ऊपरी सतह खराब हो जाती है. और अंदर से फल लाल दिखाई देने लगते हैं. जो कुछ दिन बाद पौधों से अलग होकर गिर जाते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद उन पर बोर्डो मिश्रण की उचित मात्रा का तीन से चार बार छिडकाव करना चाहिए.
शैवाल वर्ण
अमरुद के पौधों में इस रोग का प्रभाव फल और पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों पर वेलवेट धब्बे बन जाते हैं. जबकि इसके फलों पर जलयुक्त कत्थई काले रंग के दाग दिखाई देने लगते है. रोग बढ़ने पर पौधे की पत्तियों के किनारे इससे प्रभावित होने लगते हैं. पौधों पर इस रोग का प्रभाव गर्मी के मौसम में अधिक देखने को मिलता हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कॉपर ओक्सिक्लोराईड की उचित मात्रा का छिडकाव दो से तीन बार 15 दिन के अंतराल में करना चाहिए.
पत्ती धब्बा रोग
अमरुद के पौधों में पत्ती धब्बा रोग फफूंद की वजह से फैलता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर भूरे पीले रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. और पौधे की सम्पूर्ण पत्तियां पीली पड़कर नष्ट हो जाती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कर देना चाहिए.
रस चूषक कीट
अमरुद के पौधों में सफ़ेद मक्खी, माहू, हरा तेला जैसे कीट रोग का प्रभाव रस चुस्क के रूप में दिखाई देता है. इन सभी तरह के रोगों के कीट पौधे की पत्तियों और उनके कोमल भागों पर रहकर उनका का रस चूसते हैं. जिससे पौधे की पत्तियां शुरुआत में हल्की पीली दिखाई देने लगती है. और रोग के बढ़ने पर पत्तियां पूरी तरह पीली होकर गिर जाती हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इन रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं. जिससे पौधों पर काली फफूंद (एन्थ्रेक्नोज रोग) का निर्माण होता है.
रोकथाम
- इन सभी रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाईमिथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिये.
- इसके अलावा नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव भी पौधों पर करना लाभदायक होता है.
पत्ती खाने वाले कीट
रस चुसक कीट की तरह कुछ पत्तियों को खाने वाले कीट होते हैं. जो पौधे की पत्तियों और उनके कोमल भागों को खाकर पौधों को नुक्सान पहुँचाते हैं. पौधों पर इनका प्रभाव अधिक बढ़ने से पौधे पत्तियों रहित हो जाते हैं. जिससे पौधे प्रकाश संश्लेष्ण की क्रिया नही कर पाते. और पौधों का विकास रुक जाता है. रोग ग्रस्त पौधों पर लगने वाले फलों का आकार भी काफी छोटा दिखाई देता है.
रोकथाम
- पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम के लिया पौधों पर रोग दिखाई देने के बाद डाईमिथोएट या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए.
- इसके अलावा नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव भी पौधों पर करना लाभदायक होता है.
अमरुद के पौधों पर लगने वाले ये प्रमुख रोग हैं. जिनका प्रभाव पौधों पर होने की वजह से उनकी पैदावार कम हो जाती है. और किसान भाइयों को काफी नुक्सान पहुँचता हैं. इन सभी रोगों की टाइम रहते रोकथाम कर किसान भाई अच्छा उत्पादन हासिल कर सकता हैं.