प्याज दैनिक भोजन में उपयोग की एक प्रमुख सब्जी है। इसका प्रयोग कई व्यंजन बनाने में होता है। इसके औषधीय गुणों के कारण यह पीलिया, कब्ज, बबासीर और यकृत संबंधी रोगों में बहुत लाभकारी पाया गया है। प्याज की खेती आमतौर पर मैदानी और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रबी मौसम (दिसंबर से मई) में की जाती है, जबकि कुछ क्षेत्रों में खरीफ (अगस्त से दिसंबर) में भी इसकी खेती की जा सकती है।
प्याज सूर्य के प्रकाश और तापमान के प्रति अति संवेदनशील फसल है। यह मुख्यत: एक शीतकालीन फसल है। जिसे प्रारंभिक विकास के लिए 10 से 15 डिग्री सेल्सियस और कंदों के विकास के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान औक 10 से 12 घंटे सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। प्याज की खेती से पहले खेत को तीन-चार बार जुताई करना चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।खेत तैयार करते समय 15 क्विंटल गली सड़ी गोबर खाद प्रति बीघा मिला देनी चाहिए। रोपाई के 30 और 60 दिनों के बाद 8-8 किलो ग्राम यूरिया प्रति बीघा निराई गुड़ाई के समय दें। एक बीघा के लिए 700 से 800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजाई से पहले बीज को फफूंदनाशक से उपचारित कर लेना चाहिए। पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें।
इसके पश्चात उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट डालना चाहिए। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है, पौध की क्यारी लगभग 15 सेटीमीटर जमीन से ऊंचाई पर बनाना चाहिए। बुवाई के बाद क्यारी में बीजों को 2-3 सेंटीमीटर मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा और सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद से ढक देना चाहिए।
बीजों को हमेशा पंक्तियों में ही बोना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाए कि पौधशाला की सिंचाई पहले फव्वारे से करना चाहिए। प्याज की रोपाई कतारों में करनी चाहिए, कतार से कतार की दूरी 15-20 सेंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी 8-10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। 45-50 दिन की पौध जब 6-8 इंच लंबी हो जाए, तब रोपाई के लिए उपयुक्त होती है।
रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना अति आवश्यक है। जब प्याज के पत्ते पीले पड़ कर सूखने लगें, तब सिंचाई को रोक दें। 10-15 दिन के बाद जब 50 प्रतिशत पौधों की पत्तियॉ पीली पड़कर मुरझाने लगे तब कंदों की खुदाई शुरू कर दें। फिर कंद से 2.0 से 2.5 सेंटीमीटर छोड़ कर पत्तियों को काट दें।
भंडारण में इन बातों का रखें ध्यान
प्याज को भंडारित करने से पहले कंदों को अच्छी तरह सुखा लें व अच्छी तरह से पके हुए स्वस्थ (4-6 सेंटीमीटर आकार) चमकदार और ठोस कंदों का ही भंडारण करें।
भंडारण नमी रहित हवादार गृहों में करें।
भंडारण में प्याज के ढेर की परत की मोटाई 15 सेंटीमीटर से अधिक न हों।
भंडारण के दौरान सड़े गले कंद समय-समय पर निकालते रहना चाहिए।
प्याज की फसल पर लगने वाले रोग
पौध का कमर तोड़ रोग: इस रोग से पौध का तना गल जाता है, जिससे पौधा मर जाता है।
स्टेमफाइल्म धब्बा रोग: जामुनी रंग के लंबे चकत्ते पत्तों पर दिखाई देते हैं। बाद में पत्ते झुलसने आरंभ हो जाते हैं। डाउनी मिलड्यू: प्रभावित पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा बाद मे झुलस कर सूख जाते हैं।
थ्रिप्स: यह कीट पत्तों का रस चूसकर फसल को बहुत हानि पहुंचाते हैं। पत्तों पर सफ़ेद धब्बे पड़ते हैं और पत्ते सूख जाते हैं। इन रोगों से फसल को बचाव के लिए समय-समय पर दवाइयों का छिड़काव करते रहें।
डॉ. विशाल डोगरा कृषि विवि पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय में प्रधान वैज्ञानिक हैं। वह पिछले 22 वर्षों से सब्जियों के क्षेत्र में अनुसंधान और प्रसार कार्य कर रहे हैं।