सितम्बर-अक्टूबर माह में सब्जी की बुआई हेतु किस्में
कम भूमि और कम समय में अधिक मुनाफा कमाने के लिए सब्जी की खेती ज्यादा बेहतर रहती है | किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा भी उद्यानिकी फसलों में सब्जियों को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है | देश में सब्जी उत्पाद को बढ़ने के लिए भारतीय सब्जी अनुसन्धान केंद्र की भी स्थापना की गई है | किसान सितम्बर अंत एवं अक्टूबर माह की शुरुआत के मध्य गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू, टमाटर, मटर, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, ब्रोकोली, आलू आदि की रोपाई या बुआई कर सकते हैं | किसान अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें | जो किसानों को सब्जी उत्पादन की अधिक जानकारी चाहते है वह अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र या अपने जिले के उद्यानिकी विभाग से प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन ले सकते हैं |
फूलगोभी की लगायें यह किस्में
यह समय मध्यकालीन फूलगोभी की उन्नत प्रजातियाँ जैसे – इम्प्रूव्ड जापानीज, पूसा दिवाली, पूसा कातकी, पंता सुभरा की रोपाई का उचित समय है | खेत की आखिरी जुताई पर 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 100 कि.ग्रा. फास्फोरस, 60 कि.ग्रा. पोटाश एव 10 कि.ग्रा. बोरेक्स प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें | पुरानी फूलगोभी की फसल में आवश्यकतानुसार निराई –गुड़ाई एवं सिंचाई करें | 50 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हैक्टर की दर से खडी फसल में प्रयोग करें |
बंदगोभी की लगायें यह किस्में
गांठगोभी, बंदगोभी एवं पछेती फूलगोभी की नर्सरी में करें, जिससे अक्टूबर में इनकी रोपाई की जा सकती है | पत्तागोभी की रोपाई सितंबर के अंतिम सप्ताह से प्रारम्भ कर सकते हैं | पत्तागोभी की मुक्त परागित किस्में गोल्डेन एकर, प्राइड ऑफ़ इंडिया, पूसा मुक्ता एवं संकर किस्में के.जी.एम.आर-1, क्विस्तो, श्री गणेश गोल, हरी रानी गोल, क्रांति आदि हैं | रोपाई से पूर्व 200-250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या 80 कुन्तल नाडेप कम्पोस्ट, 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस व 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेर की दर से खेत में अंतिम जुताई के समय मिला दें |
पालक की खेतीं के लिए लगाये यह किस्में
किसान पालक की सितंबर के शुरु में बुआई कर दें | पालक की खेती से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये क्षेत्र विशेष की जलवायु व भूमि के अनुसार किस्मों का चयन करना भी एक आवश्यक कदम है | पालक की खेती के लिये आल्ग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पालक नं. 51-16, वर्जीनिया सेवोय, अर्ली स्मूथ लीफ आदि उन्नत किस्में हैं | पालक की खेती के लिये खेत में पर्याप्त मात्रा में बीज की आवश्यकता होती है | अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये 25 से 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज पर्याप्त होता है | पालक की खेती से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये खाद व उर्वरक की संतुलित मात्रा का ध्यान रखना अति आवश्यक है | भूमि में खाद व उर्वरक की मात्रा का निर्धारण करने के लिये सबसे पहले खेत की मृदा का परीक्षण करवा लेना चाहिए | यदि किसी कारण से मिट्टी का परीक्षण समय पर न हो सके तो 25-30 टन प्रति हैक्टर गोबर की अच्छी सडी हुई खाद, 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए |
मेथी की खेती के लिए लगाये यह किस्में
यह औषधीय गुणों से भरपूर होती है | इसके सूखे दाने का उपयोग मसालें के रूप में वर्षों से होता आ रहा है | मैंथी में वसा, प्रोटीन, रेशा, कर्बोहाईड्रेट, मैंग्निशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, लोहा, सल्फर के साथ-साथ विटामिन ‘ए’, ‘सी’ व निकोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं | मेथी की खेती के लिये जीवांशयुक्त अच्छे जल निकास वाली दोमट चिकनी मिट्टी सर्वोतम होती है | मेथी की खेती के लिये उन्नत किस्में जैसे-पूसा अर्ली बन्चिंग, मेथी कसूरी व हिसार सोनाली किस्में 6-7 कटाई देती हैं | खेत तैयार करते समय 17 टन प्रति हैक्टर गोबर की अच्छी सड़ी हुई देशी खाद के साथ 2.7 बोरे सिंगल सुपर फाँस्फेट तथा आधा बोरा यूरिया डालें |
पालक, मेथी, कसूरी मेथी के लिये पक्तिं से पक्तिं एवं पौधें से पौधें की दुरी 30×4-5 से.मी. पर बुआई करनी चाहिए | हर कराई के बाद पालक तथा मेथी में आधा बोरा यूरिया का प्रयोग करें | मेथी के लिये 15-20 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है |
मूली उत्पादन के लिए लगाये यह किस्में
किसान मूली की एशियाई किस्मों जैसें-जापानी, व्हाइट, पूसा चेतकी, हिसार मुली-1, कल्याणपुर- की बुआई करें | मुली का एक हैक्टर में बुआई के लिये 6-8 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है | अगेती मुली की एशियाई किस्मों जैसे-पूसा देसी, पालक ह्रदय, जापानी, व्हाइट, पूसा चेतकी, हिसार मुली-1, कल्याणपुर-1 की बुआई करें | मूली का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये 8-10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज पर्याप्त होता है | भूमि में खाद व उर्वरक की मात्रा का निर्धारण करने के लिये मृदा का परीक्षण समय पर न हो सके तो 10-15 टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद, 80 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए |
टमाटर उत्पादन के लिए किसान लगाये यह किस्में
किसान टमाटर की अच्छी पैदावार के लिये तापमान का बहुत बड़ा योगदान होता है | तापमान (18 से 27) सेल्सियस के बीच उपयुक्त रहता है | टमाटर की खेती के लिये दोमट भूमि उपयुक्त रहती है | इसके लिये जल निकास की व्यवस्था जरुरी होती है | इसकी अच्छी पैदावार के लिये भूमि का पी-एच मान 6-7 के मध्य होना चाहिए |
टमाटर की उन्नत और संकर प्रजातियों के बीच की बुआई नर्सरी में करें | अगेती किस्मों जैसे – गोल्डन, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा सदाबाहर, पूसा रोहिणी , पूसा-120, पूसा गौरव, काशी अभिमान, काशी अमृत, काशी विशेष, पीएच-8, पीएच-4 की बुआई 15 सितंबर तक व पछेती किस्मों/संकर किस्मों की बुआई 15 सितंबर के बाद प्रारंभ करें | अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए करने के लिये संकर और उन्नत प्रजातियों के लिये 250-300 ग्राम और 500-600 ग्राम प्रति हैक्टर बीज पर्याप्त होता है | टमाटर की बौनी किस्मों की रोपाई 60×60 सें.मी. तथा अधिक बढने वाली किस्मों की रोपाई 75×60 सें.मी. पर करें |
किसान टमाटर की रोपाई के समय प्रति हैक्टर 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद अथवा 80 क्विंटल नाडेप कम्पोस्ट के साथ 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 80 कि.ग्रा. पोटाश, 20 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट व 8 कि.ग्रा. बोरेक्स का प्रयोग करें | खरपतवार, टमाटर की फसल से पोषक तत्वों, प्रकाश एवं पानी के लिए प्रतियोगिता करते हैं | रोग व कीट को शरण देते हैं, जिससे फलों के उत्पादन को 20-80 प्रतिशत तक कम कर देते हैं | खरपतवार फसलों में शुरुआती 4-6 सप्ताह तक अधिक नुकसान करते हैं | सिंचाई के बाद हल्की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए | रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिये पेंडीमिथेलीन (30 ई.सी.) 400 मि.ली. की मात्रा/एकड़ को 200 लीटर पानी में रोपाई से पहले छिडकाव करें |
हरा धनिया उत्पादन के लिए किसान यह किस्में लगायें
धनिया के लिये दोमट, मटियार या कछारी भूमि, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश और अच्छी जल धारण की क्षमता हो, उपयुक्त होती हैं | धनिया की उन्नत प्रजाति पंत धनिया-1, पंत हरितिमा, आजाद धनिया-1, मोरक्कन, गुजरात धनिया-1, गुजरात धनिया-2, जवाहर धनिया-1, सी.एस.-6, आर.सी.आर.-4, सिंधु की बुआई के अन्तिम पखवाड़े मे वर्षा सप्ताह होने पर कर सकते हैं | इसके लिये 15-20 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर के लिये पर्याप्त होता है |
आलू उत्पादन के लिए किसान या किस्में ले सकते हैं
इसकी अगेती फसल के लिये सितंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर अक्टूबर के दुसरे सप्ताह तक बुआई की जा सकती है | आलू की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मृदा, जिसमें जैविक पदार्थ की बहुलता हो, उपयुक्त है | अगेती आलू की बुआई के लिए कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी कुबेर, कुफरी बहार, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका तथा अल्टीमेटम किस्में मुख्य हैं | खेत की आखिरी जुताई पर 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 80 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 80 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से बुआई के समय प्रयोग करें | आलू की खेती में तापमान का अधिक महत्त्व हैं |
हरी मटर उत्पादन के लिए किसान लगाये यह किस्में
मटर की अगेती प्रजातियों की बुआई सितंबर से अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के मध्य तक कर सकते हैं | मटर की खेती के लिए दोमट और हल्की दोमट मिट्टी दोनों उपयुक्त होती हैं | मटर की अगेती प्रजातियाँ जैसे-आजाद मटर-3, काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और अगेती प्रमुख हैं | मटर की इन प्रजातियों की सबसे खास बात यह है कि यह 50 से लेकर 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं, जिससे खेत जल्दी खाली हो जाता है और किसान दूसरी फसलों की बुआई भी कर सकता है |
बुआई के लिए प्रति हैक्टर 80 से लेकर 100 कि.ग्रा. बीज की जरुरत पड़ती है | मटर को बीजजनित रोगों से बचाने के लिए मैंकोजेब 3 ग्राम या थीरम 2 ग्राम को प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए | अगेती प्रजातियों के लिये पक्तिं से पंक्ति एवं पौधें से पौधें की दुरी 30×6-8 सें.मी. पर्याप्त है | खेत की तैयारी के समय प्रति हैक्टर 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद के साथ 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, 50 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग करें |
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