कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक ऐसी व्यवस्था है जहां कृषि उत्पादों का उत्पादन और उनकी बिक्री एक कॉन्ट्रैक्ट के अधीन की जाती है जो कि किसान, आपूर्तिकर्ता और उत्पादक में होती है। यह व्यवस्था भारत में कृषि कार्यों के आधुनिकीकरण के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती है क्योंकि कृषि उत्पादों पर निर्भर उद्योगों को बढ़िया कृषि उपज के लिए पर्याप्त और समय पर इनपुट की आवश्यकता होती है। इसके अलावा भारत सरकार की राष्ट्रीय कृषि नीति भी बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिए गैर-सरकारी भागीदारी को बढ़ावा दे रही है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे
भारतीय कृषि के वर्तमान पहलुओं में कई क्षेत्र हैं जहां कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग फायदेमंद हो सकती है, विशेष रूप से औषधीय पौधों की खेती में। इसलिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लागू करने से किसान और कृषि-आधारित कंपनी दोनों को कई लाभ मिल सकते हैं। इनमें से कुछ फायदों के बारे में नीचे विस्तार में लिखा है:
उत्पादक / किसान
- कम मार्केटिंग, लेनदेन लागत और उनकी उपज के लिए सुनिश्चित बाजार। इसके अलावा उत्पादन और मूल्य निर्धारण का जोखिम भी कम हो जाता है।
- नए बाजार खोलना जो छोटे किसानों के लिए दुर्लभ थे। साथ ही किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन मिलता है।
- गुणवत्तापूर्ण कृषि उत्पादों की सही समय पर और कम लागत पर लगातार पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
इंडस्ट्रीज़
- उनकी क्षमता के बुनियादी ढांचे का उपयोग और उपभोक्ता की खाद्य सुरक्षा चिंताओं का अनुपालन।
- कृषि प्रणाली में प्रत्यक्ष निजी निवेश किया जा सकता है। उत्पादकों और कंपनियों के बीच बातचीत आधारित मूल्य निर्धारण।
- दोनों पक्ष पहले निर्धारित नियमों और शर्तों के तहत उत्पादन के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट करते हैं।
भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कंपनियों की सूची
कुछ भारतीय कंपनियां जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करती हैं, उनका उल्लेख नीचे किया गया है:
- डाबर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
- पतंजलि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
- पेसेफिक हर्ब्स एग्रो फार्म्स प्राइवेट लिमिटेड
- पेप्सिको
- एग्रोनिक हर्बल प्राइवेट लिमिटेड
औषधीय फसलें और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
खेती की बढ़ती लागत और पारंपरिक फसलों के उत्पादन में विकल्प के कारण भारतीय किसानों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए वे अन्य फसलों की ओर जा रहे हैं जो अधिक लाभ प्रदान कर सकती है। इसके अलावा इन फसलों को कम पोषक तत्वों वाली और बंजर ज़मीन में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके अलावा पूर्वी क्षेत्र की दवाइयों में पश्चिमी उपभोक्ताओं की बढ़ती रुचि के कारण इन औषधीय फसलों के व्यापार की मांग बढ़ रही है।
औषधीय फसलों की क्षमता
औषधीय पौधों में क्षमता वाले जैव-अणु होते हैं और कई चिकित्सिक दवाइयों के विकास के लिए उपयोग किए जाते हैं। इसके अलावा जड़ी बूटी की दवाइयों को अधिक सुरक्षित, अधिक शारीरिक रूप से अनुकूल और लागत प्रभावी माना जाता है। समय बीतने के साथ, मानवीय जरूरतों और व्यापारिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए औषधीय पौधों की मांग काफी बढ़ रही है। भारत में औषधीय पौधों का विशाल भंडार और गहन औषधीय ज्ञान है।
इसके अलावा सुगंधित पौधे और जड़ी-बूटियाँ भी, जिन से हर्बल दवाइयां और शरीर की देखरेख के उत्पाद बनाए जाते हैं, खेत की उच्च कमाई में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। शंखपुष्पी, अतीश, कुठ, करंज, कुटकी जैसी जड़ी-बूटियाँ शहरी उपभोक्ता के लिए ज़्यादा मायने नहीं रखती लेकिन ये पौधे उन किसानों के लिए आय का एक बड़ा स्त्रोत हैं जो इनका उत्पादन करते हैं।
नाबार्ड द्वारा नीतिगत पहल
औषधीय और अन्य व्यापारक फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों के लिए मंडीकरण के अवसर पैदा करने के लिए, नेशनल बैंक ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रूरल डिवेलपमेंट (कृषि और ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक) (नाबार्ड) ठेकेदार खेती व्यवस्था के लिए विशेष पुनर्वित्त पैकेज प्रदान करता है।
इस दिशा में नाबार्ड द्वारा की गई विभिन्न कार्रवाइयां इस प्रकार हैं:
- वित्तीय हस्तक्षेप (Interventions) व्यवधान
- AEZs (कृषि निर्यात क्षेत्र) में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए किसानों को वित्त पोषण के लिए विशेष पुनर्वित्त पैकेज।
- CBs, SCBs, RRBs और चुनिंदा SCARDBs (राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) द्वारा किए गए भुगतान के लिए 100% पुनर्वित्त।
- भुगतान के लिए अवधि सुविधा (3 वर्ष)।
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत औषधीय पौधों के लिए अधिक बड़े पैमाने पर वित्त का निर्धारण।
- औषधीय पौधों के कवरेज के अलावा AEZs में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए उत्पादकों के वित्तपोषण के लिए पुनर्वित्त योजना का बाहरी AEZs तक विस्तार।
- ऑटोमेटिक रिफाइनेंस सुविधा के तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए पुनर्वित्त स्कीम का विस्तार।
भविष्य की संभावना
औषधीय फसल क्षेत्र में ज़्यादा संभावनाएं हैं। उचित व्यावसायीकरण प्रणाली घरेलू और वैश्विक बाजारों को खोलकर और उच्च मूल्य प्रदान करके उद्योग और किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। इसके अलावा लगभग 162 प्रजातियां हैं जो औषधीय फसलों के अंतर्गत आती हैं। इसलिए औषधीय पौधों की खेती विशेष रूप से छोटे पैमाने के किसानों के लिए आर्थिक और आर्थिक रूप से अत्यधिक लाभकारी हो सकती है।
पौधों के साथ-साथ इसके संग्रह, प्रोसेसिंग और परिवहन की मांग भी बढ़ रही है। यह बदले में रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहा है।
भारत में ‘हर्बल उद्योग’ विकसित करने के लिए औषधीय फसलों की एक समृद्ध विविधता है। ऐसी उच्च विविधता उनकी चिकित्सा प्रभावकारिता को काम करने और विभिन्न रोगों के इलाज के लिए लागू करने के लिए अन्य वैज्ञानिक अनुसंधान में सहायक हो सकती है।
इसके अलावा भारत पहले से ही विश्व स्तर पर बेहतर गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाइयों के कम लागत वाले निर्माता के रूप में जाना जाता है। इसलिए इस कारक को भारतीय हर्बल उत्पादों को मार्केटिंग के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
संक्षेप
भारतीय मूल के पौधों पर आधारित दवाइयों में मौजूदा दुनियाभर रुचि का कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, खोज और विकास को बढ़ावा देने और निर्यात में वृद्धि के माध्यम से एक स्पष्ट नीति विकसित करके प्रयोग किया जाना चाहिए।
औषधीय फसल के क्षेत्र को उन्नत करने के लिए, दिए गए प्रत्येक चरण (जैसे कि खोज, उत्पादन, संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण और मार्केटिंग) में तालमेल वाले प्रयासों की आवश्यकता होती है।
तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, आप कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विकल्प चुनना चाहते हैं या एक किसान के रूप में औषधीय पौधे उगाना चाहते हैं तो हाँ, आप सही निर्णय ले रहे हैं।
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